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आप॑थयो॒ विप॑थ॒योऽन्त॑स्पथा॒ अनु॑पथाः। ए॒तेभि॒र्मह्यं॒ नाम॑भिर्य॒ज्ञं वि॑ष्टा॒र ओ॑हते ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

āpathayo vipathayo ntaspathā anupathāḥ | etebhir mahyaṁ nāmabhir yajñaṁ viṣṭāra ohate ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आऽप॑थयः। विऽप॑थयः। अन्तः॑ऽपथा। अनु॑ऽपथाः। ए॒तेभिः॑। मह्य॑म्। नाम॑ऽभिः। य॒ज्ञम्। वि॒ऽस्ता॒रः। ओ॒ह॒ते॒ ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:52» मन्त्र:10 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:9» मन्त्र:5 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यों को समस्त विद्या धर्ममार्ग ढूँढने चाहियें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (आपथयः) सब ओर अभिमुख मार्ग जिनका वे और (विपथयः) अनेक प्रकार के वा विरुद्ध मार्ग जिनके वे और (अन्तस्पथा) भीतर मार्ग जिनके वे और (अनुपथाः) अनुकूल मार्ग जिनका वे (एतेभिः) इन मार्गों में स्थित हुओं और (नामभिः) संज्ञाओं से (मह्यम्) मेरे लिये (यज्ञम्) विद्वानों के सत्कार आदि कर्म को (विष्टारः) विस्तार (ओहते) प्राप्त होता है ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! आप लोग सम्पूर्ण विद्याओं और उनसे उत्पन्न क्रिया हुए क्रिया कौशल मार्गों को यथावत् प्रत्यक्ष करके अन्यों को भी उत्तम प्रकार जनाओ सिखलाओ ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैः सर्वे विद्याधर्ममार्गा अन्वेषणीया इत्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! आपथयो विपथयोऽन्तस्पथाऽनुपथा एतेभिर्नामभिर्मह्यं यज्ञं विष्टार ओहते ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आपथयः) समन्तादभिमुखः पन्था येषान्ते (विपथयः) विविधा विरुद्धा वा पन्थानो येषान्ते (अन्तस्पथा) अन्तराभ्यन्तरे पन्था येषान्ते (अनुपथाः) अनुकूलः पन्था येषान्ते (एतेभिः) मार्गैर्मार्गस्थैर्वा (मह्यम्) (नामभिः) संज्ञाभिः (यज्ञम्) विद्वत्सत्कारादिकम् (विष्टारः) प्रसारः (ओहते) प्राप्नोति ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यूयं सर्वविद्यातज्जन्यक्रियाकौशलमार्गान् यथावत् साक्षात् कृत्याऽन्यानपि सम्यक् विज्ञापयत ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! तुम्ही संपूर्ण विद्या व त्यापासून उत्पन्न झालेले क्रियाकौशल्य प्रत्यक्ष करून इतरांनाही अवगत करून द्या. ॥ १० ॥